वी-डैम की पक्षपाती रिपोर्ट

इस साल जब दुनिया भर के 70 देशों में चुनाव होने जा रहे हैं और लगभग आधी आबादी अपने मताधिकार का प्रयोग करने जा रही है, ऐसे में स्वीडिश थिंक-टैंक वी-डेम (वेरायटीज ऑफ डेमोक्रेसी) की हाल ही में जारी रिपोर्ट दुनिया में लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था को लेकर की गई मार्किंग कई मायनों में महत्‍वपूर्ण हो जाती है। ऐसे में, यह सवाल भी उठ रहा है कि क्‍या नुमाइंदगी की सबसे उदारवादी लोकतांत्रिक पद्धति वाले भारत सहित कई अन्‍य देशों में उदारवादी लोकतांत्रिक पद्धति की दिशा तो नहीं भटक रही है। दरअसल, वी-डैम वह संस्‍था है, जो समय-समय पर दुनिया के लोकतांत्रिक हालातों पर रिपोर्ट पेश करती है। जब दुनिया में लोकतंत्रा का सबसे बड़ा पर्व इस साल है, ऐसे में वी-डैम की रिपोर्ट निश्चित ही चितिंत करने वाली है, लेकिन सवाल

यह भी उठता है कि क्‍या भारत के परिपेक्ष्‍य में बनी रिपोर्ट को पश्चिमी देशों के चश्‍मे से तो तैयार नहीं किया गया है, यह सवाल महत्‍वपूर्ण है। रिपोर्ट में न केवल भारत बल्कि अन्‍य देशों को लेकर भी चिंता व्‍यक्‍त की गई है कि आखिर किस तरह चुनाव महज औपचारिकता रह गईं हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल हो रहे चुनावों में विश्व स्तर पर, इतिहास में पहले से कहीं अधिक मतदाता चुनाव में भाग ले रहे हैं, क्योंकि कम से कम 64 देशों (साथ ही यूरोपीय संघ) – जो दुनिया में लगभग 49ः लोगों की संयुक्त आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं में राष्ट्रीय चुनाव होने वाले हैं, जिसके परिणाम कई लोगों के लिए, आने वाले वर्षों में परिणामी साबित होंगे। उदाहरण के लिए, ताइवान में, जो अगला राष्ट्रपति बनेगा, वह स्व-शासित द्वीप के प्रति बीजिंग के दृष्टिकोण को मूल रूप से आकार देगा, जिस पर उसने बार-बार आक्रमण की धमकी दी है। लिहाजा, इन परिस्थितियों में केवल चुनाव कराने का मतलब यह नहीं है कि प्रक्रिया स्वतंत्रा या निष्पक्ष होगी। बांग्लादेश की प्रधानमंत्राी शेख हसीना लगातार चौथी बार जीत चुकी हैं, हालांकि राजनीतिक असंतोष पर एक महीने से चल रही कार्रवाई के विरोध में देश की मुख्य विपक्षी पार्टी द्वारा चुनाव का बहिष्कार किया किया, लेकिन परिणाम सिफर ही रहा। इसी तरह, पाकिस्तान में पूर्व प्रधान मंत्राी इमरान खान जेल में हैं, जबकि फरवरी के चुनाव से पहले उनकी पार्टी को दबा दिया गया और उनके समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया, लिहाजा वहां के चुनाव भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर खरे नहीं उतर पाए। रुस की स्थिति ने भी यही कहानी दोहराई है। रिपोर्ट में उन देशों को ‘स्वतंत्राता और निष्पक्षता स्कोर’ दिया गया, जो यह दर्शाता है कि जिन देशों में चुनाव होने जा रहा है, वहां लोकतांत्रिक मूल्‍यों की क्‍या स्थिति है, इस बात का दर्शाती है।

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