किसी की मौज, तो किसी को मौत

यह जगत आवरण का दूसरा अंक है। पहले अंक की सफलता ने हमें प्रोत्साहित किया। हौसले से भर
दिया। हम आभारी हैं। प्रार्थना है कि स्नेह, सहयोग और समर्थन का यह बंधन अटूट रहे।
यह अंक ‘जेल के खेल’ पर है। जेल के कई रूप और रंग हैं। आलेखों में तथ्यों के साथ
अलग-अलग पहचान को सामने लाने का जतन है। सभ्य समाज के लिए जेल एक सुधार गृह है। जेल की
व्यवस्था को संवारने के नाम पर अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्रांस आदि यूरोपीय देशों में जेल को निजी हाथों में
सौंपने का उपक्रम जारी है। संभव है कि वहां से चली बाजारवाद की यह क्रांति आने वाले समय में भारत तक
पैठ बना ले। निजी स्तर पर जेल को बनाने और व्यवसाय करने का धंधा चमक उठा है। लोग पैरवी पैगाम
से टेंडर पर जेल हासिल कर रहे हैं। कैदियों को मानवीय जीवन देने वाले भोजन, कपड़ा और मकान की
न्यूनतम व्यवस्था की गारंटी तथा अदालती सुनवाई के सटीक वक्त पर कैदियों को पहुंचाने के लिए यातायात
व्यवस्था के नाम पर गाढ़ी कमाई की जा रही है।
सरकारी जेलों का कुत्सित पहलू है कि पकड़े जाने के बाद से न्याय पाने की प्रत्याशा में फंसे बंदियों
को बिना किसी सुनवाई के लंबे समय तक जेलों में बंद रखा जा रहा है। अदालतें समय पर सुनवाई पूरी कर
निर्दोष को रिहा कराने में अक्षम हैं। कई निरपराध दशक दो दशक के बाद बंदीगृह से रिहा हो रहे हैं। सिर्फ
आशंका में बर्बाद हुए उनके जीवन के सुनहरे दिनों का हिसाब देने वाला कोई नहीं। जेल कैदियों के लिए
आश्रय स्थल है।
महिला कैदियों को अपने अबोध बच्चों को छह वर्ष तक रखने की विशेष छूट थी। विर्भया कांड के बाद
इसे बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया गया। एक चर्चित वाकया है। दिल्ली की मशहूर जेल के महिला कैदियों के
बच्चों को जब चिड़ियाघर घूमाने ले जाया गया, तो बच्चों ने हाथी की पहचान “बड़ा बिल्ली” के रूप में की।
उन्हें बाहर की दुनिया देखने का मौका नहीं मिला था। कैदियों के साथ जेल की चाहरदिवारी में बंद बच्चों
का यह व्यवहार चौंकाने और सभ्य समाज को शर्मिंदा करने वाला था। जेल की शुरुआत क्यों, कब और कैसे
हुई इसपर लेख हैं।
चालाक चपल अपराधियों के लिए जेल क्यों और कैसे सुरक्षित जगह है। यह विचारनीय तथ्य है।
भ्रष्टाचार के बल पर जेल में बंद कैदियों के मौज लूटने की कहानी आम है। कई कैदी जेल यात्रा से अपने
हीरोइज्म को चमका लेते हैं। कमजोर को सताते हैं, तो ठग और अपराधी जेल में बंद कैदियों से हाथ
मिलाकर ज्वाईंट वेचर खड़ा कर लेते हैं। जरायम की दुनिया में अपना रसूख बढा लेते हैं। कई बेकसूर और
अंडर ट्राइल कैदियों को जेल का जीवन मौत से भी बदतर जिंदगी का बोध करा देता है।
जेल के इंसान के जीवन पर असर को बयां करने वाले आयामों पर लेखकों के स्वंयसिद्ध विचार हैं।
मार्मिक हालात का जिक्र है। विस्फोटक सुझाव हैं। जेल की पोल खोलने वाले डाटा हैं। जेल को संताप गृह
बनाने की समीक्षा है, तो कथित शूरवीरों के लिए जेल को मौजगाह बनाने वाली व्यवस्था पर सवाल हैं।

जगत आवरण का यह अंक उन कैदियों को समर्पित है जिन्हें जेल में रहकर भयंकर
मानसिक संत्रास से गुजरना पड़ रहा है। तारीख दर तारीख वाली न्याय व्यवस्था ने जिनका
जीवन दूभर कर रखा है। दुनिया भर की जेलें अदालती सुनवाई की प्रत्याशा में फंसे कैदियों से
अटी पड़ी हैं। जेल में लाखों लोग बंद हैं। उनमें सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदी हैं। यदि पुलिस
अनुसंधान और चार्जशीट में तत्परता दिखातीं, अदालतें सुनवाई की गति बढ़ातीं, जमानत की
व्यवस्था कम जटिल होती तो जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की समस्या का काफी हद तक
निदान हो सकता है। न्याय प्रणाली में लंबे समय से इन बिंदुओं पर चिंतन-मनन चल रहा है।
इसे समाधान तक पहुंचाने की जरूरत है। हम उन शूरवीरों के प्रति भी श्रद्धानत हैं जिन्होंने जेल
में रहकर तपस्या की और छूटने के बाद मानवता को नई ऊंचाई देने का काम किया।