भारत में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का इतिहास लंबा है। सबसे पहले 1850 ई. में ब्रिटिश हुक्मरानों ने प्रशिक्षु अर्थात एपरेंटिस अधिनियम पारित किया। यह उन बच्चों से निपटने के लिए था जिन्होंने कानून के विपरीत कुछ किया था। इस अधिनियम के अनुसार 10 से 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों ने यदि छोटे-मोटे अपराध किए हैं तो उन्हें जेल नहीं भेजा जाएगा, बल्कि इसकी जगह किसी उद्योग में या किसी प्रतिष्ठान में व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए भेजा जाएगा। इसके अलावा 1876 में ब्रिटेन की व्यवस्था की तर्ज पर सुधारात्मक स्कूल अधिनियम, बोर्स्टल स्कूल अधिनियम, 1920 के बाल अधिनियम के तहत विस्तार दिया गया। उन्हीं
दिनों राज्य स्तर पर भी बंगाल बाल अधिनियम और मद्रास बाल अधिनियम पारित किया गया। एपरेंटिस अधिनियम को सुधारक विद्यालय अधिनियम 1897 के तहत लागू किया गया। भारतीय दंड संहिता 1860 और आपराधिक रणनीति संहिता 1861 में भी
किशोर न्याय के लिए विशेष प्रावधान किए गए। आजादी के बाद किशोर न्याय अधिनियम-1986 के तहत बाल अपराधियों के लिए सुधारात्मक प्रावधान लागू किए गए। 1989 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा के बाद निर्धारित मानदंडों और दिशानिर्देशों के तहत इसमें आवश्यक बदलाव किए गए। फिर किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम- 2000 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। इसके लिए, एक कार्य समूह की स्थापना की गई और इसके प्रभुत्व के अंदर बच्चों का प्रबंधन करने के लिए अधिनियम 1 अप्रैल, 2001 से लागू किया गया है। किशोर न्याय के संगठन के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियमों की स्वीकृति के साथ, भारत उसमें व्यक्त मानकों के आलोक में अपने ढांचे को आगे बढ़ाने वाला पहला राष्ट्र था। 2012 के निर्भया बलात्कार कांड में जब एक नाबालिग अपराधी पर सर्वाधिक क्रूरता का व्यवहार करने का मामला सामने आया तो 2000 के कानून में कुछ आवश्यक बदलावों की जरूरत महसूस की गईं इसके तहत 7 मई 2015 को लोकसभा में किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम- 2000 को निरस्त कर उसकी जगह किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम- 2015 पारित किया गया। इसमें 16 से 18 वर्ष आयु के किशोरों को जघन्य अपराध में शामिल रहने पर वयस्कों की तरह दंड का प्रावधान किया गया। इसमें किशोर न्याय बोर्ड
और हर जिले में बाल कल्याण समिति के गठन का प्रावधान किया गया। इसके अलावा हेग कंवेंशन 1993 के अनुरूप अंतरदेशीय दत्तक ग्रहण के संबंध में प्रावधान किए गए। फिलहाल देश में किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम- 2015 ही लागू है।
बाल अपराधियों को विध्वंसात्मक दिशा से रचनात्मक दिशा में मोड़ने में बाल सुधार गृहों की अहम भूमिका हो सकती है लेकिन इसके लिए कानूनविदों, मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रिायों को गंभीरता से विचार-विमर्श कर एक अचूक प्रणाली विकसित करनी होगी। यह किसी प्रांत या देश का नहीं पूरी दुनिया का मुद्दा है। इसपर गंभीर विमर्श की जरूरत है।दार्थों के कारोबार से लेकर तमाम अवैध धंधों का संचालन वही करता था। उसी ने बाल कैदियों की फरारी की साजिश रची थी। कई दिनों की मेहनत के बाद खिड़की की छड़ें काटी थीं। भारत के बाल सुधार गृहों का एक सच यह भी है कि वहां जितना अवसर सुधार का है उतना ही बिगड़ने का भी है। यह सुधार की पाठशाला हैं तो अपराध जगत का प्रवेश द्वार भी हैं। वहां अपराध के प्रशिक्षण का काम भी
धड़ल्ले से होता है। विश्नोई गैंग में नाबालिग और नवबालिग अपराधियों की खासी संख्या है। हाल में सीने स्टार सलमान खान के घर
के पास फायरिंग में शामिल विश्नोई गैंग के दो अपराधी भी कम उम्र के युवक ही थे।भारत के बाल सुधार गृहों में फरार होने
के अलावा हर तरह के अपराधों से संबंधित खबरें आती रहती हैं। उनमें नशीले पदार्थों की आपूर्ति के अलावा दुष्कर्म, मारपीट,
दबंगई और हत्या तक की खबरें शामिल होती हैं। इनकी प्रबंधकीय व्यवस्था में भी गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के मामले उजागर
होते रहते हैं।देश के विभिन्न शहरों में कुछ ऐसे भी पेशेवर अपराधी गिरोह सक्रिय हैं जो नाबालिग बच्चों को भिक्षाटन और जरायम
की दुनिया में लगाते हैं। मई 2023 में बाल संरक्षण आयोग की एक टीम ने ऐसे ही एक गिरोह का भंडाफोड़ किया था। आयोग
के अध्यक्ष उत्तम नुखर्जी के नेतृत्व में एक गहन जांच-पड़ताल के बाद पता चला था कि पटना में एक खेसारी गैंग है जो महिला
सहयोगियों के जरिए गरीब और अनाथ बच्चों को फंसाता है। उन्हें नशे का आदी बनाता है। अपराध की ट्रेनिंग देता है और उन्हें भीख मंगवाने से लेकर आपराधिक कृत्यों में लगा देता है। इस गिरोह के बाल अपराधी धनबाद सहित आसपास के रेलवे स्टेशनों पर भिखारी के वेश में घूमते रहते हैं और चोरी-छिनतई जैसे कारनामे करते रहते हैं। गिरोह का सरगना स्थानीय अपराधियों की मांग पर बाल अपराधियों की आपूर्ति करता है। आयोग के मुताबिक सिर्फ धनबाद स्टेशन क्षेत्रा में ही इस गिरोह के 72 बाल अपराधी सक्रिय पाए गए। दिलचस्प बात है कि गिरोह का संचालक खेसारी उर्फ कछुआ दिव्यांग है। उसके दोनों पांव नहीं हैं। फिर भी अंतरप्रांतीय गिरोह का संचालन करता है। आयोग के अध्यक्ष उत्तम मुखर्जी को धनबाद में छह माह के दौरान बरामद हुए
चार बाल अपराधियों से पूछ-ताछ के दौरान पता चला था कि सभी बच्चे एक ही गैंग के
लिए काम करते हैं। सबको बिहार के पटना, गया व नवादा से धनबाद भेजा गया था। इन बाल अपराधियों से मिली जानकारी के आधार पर बाल संरक्षण आयोग की टीम ने धनबाद और पटना के स्टेशनों तथा आस-पास के क्षेत्रों में जा कर अध्ययन किया। मामले पर कार्रवाई की जा रही है।बहरहाल भारत में बाल सुधार गृहों में सुधार से कहीं ज्यादा तेज गति गुप्त रूप से संचालित बाल अपराध प्रशिक्षण केंद्रों की है। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक बाल अपराधियों के 400 से अधिक मामले दर्ज हुए थे। दरअसल भारत में न सिर्फ बाल अपराध के आंकड़ों में वृद्धि हो रही है बल्कि इसकी जटिलता भी बढ़ रही है। औद्योगीकरण और शहरीकरण की प्रक्रिया के तहत संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों के विस्तार के बाद एक ऐसे वातावरण का सृजन हुआ है जिसमें बच्चों को संस्कारित करने का मां-बाप के पास समय नहीं है और बूढ़े-बुजुर्ग जो संस्कारों की पाठशाला हुआ करते थे एकल परिवार में शामिल नहीं हैं। इसमें अधिकांश परिवार बच्चों पर नियंत्राण रखने में असफल सिद्ध हो रहे हैं। वैयक्तिक स्वंतत्राता में वृद्धि के कारण नैतिक मूल्य बिखरने लगे हैं, इसके साथ ही अत्यधिक प्रतिस्पर्धा ने बालकों में विचलन को पैदा किया है। कम्प्युटर और इंटरनेट की उपलब्धता ने इन्हें समाज से अलग कर दिया है। फलस्वरूप वे अवसाद के शिकार होकर अपराधां में लिप्त हो रहे हैं।वर्ष 2000 के आंकड़ों के अनुसार भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कुल 9,267 मामले पंजीकृत किए गए तथा स्थानीय एवं विशेष कानून के अन्तर्गत 5,154 मामले पंजीकृत किये गये। बाल अपराध की दर में विभिन्न वर्षो में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। 1997 में बालकों में अपराध की दर 0.8 प्रतिशत थी, वही बढ़कर 1998 में 1,0 प्रतिशत हो गया इसके पश्चात् 1999-2000 मे 0.9 प्रतिशत रही। यह आंकड़ा बढञता ही जा रहा है। बालकों द्वारा किये गये अपराधों मे से भारतीय दंड संहिता के अन्तर्गत सबसे अधिक संपत्ति के थे। वर्ष 2000 में दंड
संहिता के अंतर्गत कुल संज्ञेय अपराधों में से चोरी (2,385), लूटमार (1,497) तथा सेंधमारी (1,241) के मामले पाये गए, इसके अलावा
लैंगिक उत्पीड़न के (51.9), डकैती के (32 प्रतिशत), हत्या के (28.6 प्रतिशत), बलात्कार के (24.5 प्रतिशत) मामले पाए गए।