जेल जाना भले ही आम नागरिक को इज्जत प्रतिष्ठा के हनन का कारण लगता हो, मगर पेशेवर कैदियों की संख्या भी खूब है, जो बड़े टशन में जेल का जीवन मंजूर करते हैं। दिल्ली के जेल प्रशासन में रहे वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि तिहाड़ जेल तक में किसी और के अपराध का इल्जाम को अपने सिर ओढकर आने वाले कैदियों की तादाद अच्छी खासी है। कमाई की लालच या खौफ के आलम में कई कैदी बिना किसी अपराध के जेल पहुंचते हैं। उनको हैबिच्युअल कैदी की श्रेणी में रखा जाता है। और यह मानकर चला जाता है कि ऐसे कैदी जेल का लुफ्त उठाने चले आए हैं।जेल की सुरक्षा और बिग बॉस के निर्देश के अलावा भोजन का स्थायी इंतजाम उनके लिए जेल जीवन के आकर्षण का आधार होता है। इसके अलावा जेल में होने पर कैदियों को दिहाड़ी की सुनिश्चित कमाई मिलती है। कैदी की कमाई को उसके परिजन अथवा वकीलों तक बैंक के जरिए पहुंचाया जाता है।सरकारी तंत्रा जेल में बंद कैदी के भरण पोषण और रखवाली पर मोटी रकम खर्च करता है। यह खर्च ही जेल को निजीकरण को हवा दे रहा है। कई व्यवसायियों की कोशिश है कि यूरोपीय जेलों की तरह ही अपने यहां टेंडर के जरिए जेल आवंटित किए जाएं। जेल नामक व्यवस्था से जुड़ी भ्रष्टाचार इसकी एक वजह है। जेल संचालन के लिए छोटे बड़े कामों के लिए आवंटित धन का सरकारी तंत्रा में बंदरबांट की शिकायत आम है। यही वजह है कि हर सरकार में जेल विभाग पाने की मारामारी मची रहती है। कई राज्य सरकारों में मुख्यमंत्रा ही जेल अपने पास रखना मुफीद समझते हैं। इसकी बड़ी वजह है कि जेल के लिए आवंटित धन के खर्चे के हिसाब का गफलत है। बढ़ती आबादी के साथ आपराधिकघटनाएं बढ़ रही है। पुलिस प्रशासन की कार्रवाई में जेल आने जाने वालों की संख्या बड़ी है। बहुत सारे कैदी तो बिना कसूर साबित हुए सजा भी काट रहे हैं क्योंकि उनको अदालतों में सुनवाई का वक्त ही नहीं मिल रहा। इसी तरह कसूर कोई करे, सजा पाने जेल कोई और चला जाए इसका भी खूब चलन है। पेशेवर कैदियों की तादाद भी जेल प्रशासन के लिए खासा सिरदर्द है। मतलब मजबूत धनाढ्य अपराधी किराए पर किसी को सामने कर जेल जाने से बचे रहते हैं। जेल में सजा काटने वाले ये अपराधी जेलों में क्या काम करते हैं?राज्य सरकारों के जेल मैन्युअल के मुताबिक बंद कैदियों को उनकी योग्यता के हिसाब से काम दिया जाता है। जेल में सभी कैदियों को कुछ ना कुछ काम करना ही होता है। जैसे कुछ प्रोडक्ट बनाना, जेल में कोई नया निर्माण कार्य, जेल की साफ-सफाई आदि। इन काम के बदले सरकार इन कैदियों को मेहनताना का पैसा देती है।जेल पहुंचने के साथ ही कैदियों को उनकी योग्यता के मुताबिक ट्रेनिंग दी जाती है। फिर काम पर लगाया जाता है। अपने काम में एक्सपर्ट कैदियों को किए काम के बदले नकद मिलता है। मेहनताना की रकम अलग अलग प्रदेशों की जेल में अलग अलग है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश की जेलों में अनुभव और कार्य के आधार पर 81 रुपए, 60 रुपए और 50 रुपए प्रतिदिन की धनराशि तय है। यह धनराशि उनके बैंक अकाउंट में जमा करवा दी जाती है। कैदी जेल में कमाने वाली धनराशि को
चेक के माध्यम से अपने परिवार के लोगों या वकील को दे सकते हैं। दुनिया भर के जेल मैनुअल में कैदियों के लिए धनराशि तय की जाती है। जेल चलाने के लिए आवंटित बजट में कैदियों को काम के बदले दी जाने वाली रकम का जिक्र होता है। इसके अलावा कैदियों को सुरक्षा की गारंटी दी जाती है। मानवीय तरीके से उनके रख रखाव और भरण पोषण की व्यवस्था को कागजों में सर्वोपरि रखने की बात होती है।
कैद में हो रही हत्याए
व्यापक खर्च के बावजूद जेल में कैदियों की मौत बड़ी समस्या है। कई जेलों में गैंगवार की घटनाएं बढ रही हैं। अंडरवर्ल्ड काप्रभाव बढ़ रहा है। इसके अलावा गैंगस्टर जेल के अंदर रहकर बाहर हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं। आपसी मारामारी के अलावा जेल की कालकोठरी में बंद कैदियों की आत्महत्या व्यवस्था के सामने बड़ी समस्या है। कई कैदी जेल में मिलने वाली जलालत और बाहर निकलने के लिए न्याय मिल पाने की उम्मीद के मर जाने के बाद आत्म हत्याएं कर रहे हैं। यह जेल की लुंजपुंज व्यवस्था की गवाह है। इसे लेकर जेल सुधार की कोशिशों पर निरंतर सवाल उठ रहे हैं। सिर्फ भारत की बात करें तो 2017 से 2021 के दौरान 817 कैदियों की अप्राकृतिक मौत हुई हैं। असमायिक मौत का शिकार बनने वाले अस्सी प्रतिशत
कैदियों ने आत्महत्या की हैं। कई मौतें जेल प्रशासन की लापरवाही की वजह से हुई हैं। प्रति वर्ष प्रकाशित होने वाली प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट में इस पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अमिताव राय की अध्यक्षता में बनी समिति का ब्यौरा है कि 2017 से 21 के बीच उत्तर प्रदेश की जेलों में सबसे ज्यादा 101 कैदियों ने आत्महत्या कर ली। इस दौरान पंजाब की जेलों में 63 और बंगाल में 60 कैदियों ने हालात से निराश होकर जीवन त्याग दिया