भरे फागुन के महीने में 16 मार्च को चुनाव की रणभेरी क्या बजी बहुरंगी फिजा का बसंती असर पूरे चुनाव अभियान पर देखने को मिल रहा है। भले ही बैशाख मास के 4 जून को परिणाम आए पर पूरी राजनीति रंगीन बनी हुई है। चुनाव में बेड़ा पार लगाने के लिए कई राजनीतिक दलों के टुकड़े हुए, कई दिग्गजों के दंभ टूटे, कई ने चुपके से दल बदल लिया, कई क्षेत्रा बदल नए वोटर, नई जनता के आगे पेश हुए। पर सबकी जनता के आगे घिग्घी बंधी है, दीन हीन की मुद्रा में सब प्रत्याशी मुस्कुरा रहे हैं। चुनाव से पहले कौन किस दल क साथ कहां खड़ा था और चुनाव के मैदान मेंकिस दल से लड़ रहा है इसका कोई हिसाब किताब नहीं। भारतीय निर्वाचन आयोग कीओर से 544 लोकसभा सीटों के लिए जारी तारीखों के बाद राजनीतिक घमासान मचा है। जनता के आगे भांति-भांति के मुद्दों की भरमार है। दिलचस्प नजारा है पूरे देश का रग-रग चुनावी रंग से रंगा पड़ा है। चुनाव आयोग की नजर से छिपकर पैसे बहाए जा रहे हैं। तोहफे बांटे जा रहे हैं। देखकर कोई भी कह सकता है कि लोकतंत्रा में चुनाव लडना आम व्यक्जि की पहुंच से बाहर चला गया है। सच में महंगा सौदा बन गया है। बार बार चुनाव के महंगे खर्च से बचाने के लिए सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी ने विराग छेड़ रखा है। प्रधानमंत्राी नरेन्द्र मोदी की तीसरी बार सत्ता में सुगम वापसी होती है तो संभव है चार जून के नतीजे के साथ ही शुरुआती कैबिनेट बैठक में ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का फैसला हो जाए। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने मुकम्मल तैयारी कर रखी है। कानून व्यवस्था की चुनौती से पार पाने के लिए आयोग ने 18 वीं लोकसभा का चुनाव सात चरणों में कराने का फैसला लिया है। पहले चरण की 102 सीटों के लिए वोटिंग 19 अप्रैल को होनी है। इसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, अंडमान निकोबार, जम्मू कश्मीर, लक्षदीप, पदुचेरी की सीटें शामिल हैं। दूसरा चरण में 89 सीटों के लिए 26 को होना है। तीसरे चरण में 94 लोकसभा सीटों के लिए 7 मई को मतदान होना है। चौथे चरण की वोटिंग 13 मई को 96 सीटों के लिए और पांचवें चरण की वोटिंग 20 मई को 49 सीटों के लिए होनी है। छठे चरण में 25 मई को 57 सीटों के लिए और आखिरी सातवें चरण में पहली जून को होगी। चार जून को विश्व के सबसे ज्यादा मतदाताओं के प्रत्यक्ष भागीदारी वाले चुनाव का परिणाम आना है। चुनाव ऐलान के साथ आचार संहिता से लेकर 80 दिनों का समय मतदाताओं के मान मुनव्वल का है। प्रजा राजा बनी पड़ी है। यही लोकतंत्रा का असली रंग है। जनता को चंद दिनों के लिए ही सही भगवान होने का अहसास कराया जा रहा है। राजनीतिक दलों व संपन्न उम्मीदवारों की ओर से जनता रूपी भगवान को खुश करने की होड़ लगी रहती है। चाक चौकस चुनाव आयोग मतदाताओं को भ्रष्ट करने की कोशिशों पर लगाम लगाने में लगा पड़ा है।अठारहवीं लोकसभा के साथ चुनाव आयोग आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में विधानसभा और लंबित उपचुनाव कराने में लगा है। मतलब इन चार राज्यों में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव की बहुरंगी छटा देखने को मिल रही है। प्रत्याशियों के ऐलान के आखिरी मोड़ पर चुनावी गठबंधन बन और बिगड़ रहे हैं। चुनाव के ऐलान से पहले विपक्षी एकता के बल पर भारतीय जनता पार्टी से सत्ता छीनने की जो व्यूह रचना की गई थी, चुनाव के रण छिड़ने के साथ साथ तार-तार होता नजर आ रहा है। यह भाजपा की नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के मुस्कुराने की खास वजह है। चुनाव ऐलान से ऐन पहले सत्ता विरोधी इंडी गठबंधन के जन्मदाता नीतीश कुमार का जनता दल (यू) छिटक कर अपने पुराने गठबंधन में पहुंच गया और बिहार के 40 लोकसभा सीटों का खेल बिगाड़ दिया। लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के सपने को करारा झटका लगा। बिहार की सत्ता से बाहर होने के बाद अब विपक्ष नए तरीके से चिरपरिचित प्रतिद्वंद्वी से सामना कर रहा है। बिहार ही नहीं पड़ोस की पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्राी ममता बनर्जी को इसलिए इंडी गठबंधन से दूर जाना पड़ा कि वह वोटर्स के बीच अकेले अपने दम पर भाजपा गठबंधन से मुकाबिल होने का फायदा उठाना चाहती है। बिहार के ही पड़ोस उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लोकसभा की 80 सीटें हैं।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व में बन रहे माहौल को पंचर करने काकाम राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने किया है। झारखंड का खेल निराला है। मुख्यमंत्राी हेमंत सोरेन को चुनाव ऐलान से ऐन पहले ईडी ने जेल में डाल दिया। उपजी संवेदना को भुनाने के लिए हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन जब तक संभल पाती तब तक कल्पना सोरेन की बड़ी गोतनी सीता सोरेन को भारतीय जनता पार्टी में शामिल कराकर दुमका की ऐतिहासिक लोकसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया गया। यह चालबाजी झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्जि मोर्चा के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। चुनावी रण पर अटपटे रंग चढ़ाने का काम ओडिशा में भी किया गया। यहां लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो रहे हैं। पहले तो भारतीय जनता पार्टी ने बरसों से सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया। लेकिन जैसे ही भनक लगी कि इससे सत्ता विरोधी वोट एकमुश्त कांग्रेस के पाले में चला जाएगा, तो पासा पलट दिया गया। भाजपा ने झटके में बीजू जनता दल से एलानिया गठबंधन तोड़ा और सत्ता विरोधी मत पर अपनी भी हिस्सेदारी का होने का दावा ठोक दिया। संभव है कि पर्दे के पीछे की इस दोस्ती को भोली भाली जनता को समझ में नहीं आए और लगातार चौथी बार नवीन पटनायक फिर से मुख्यमंत्राी की शपथ लेते नजर आएं। भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा सीटों का गुणात्मक फायदा हो जाए। ओडिशा के पड़ोस में तेलंगाना है। भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव के साथ भारतीय जनता पार्टी के अंदरखाने दोस्ती का प्रचार कर कांग्रेस पार्टी ने हाल में भरपूर लाभ उठाया है और तेलंगाना की सत्ता में दस बरसों बाद लौटी है। यह दीगर है कि मुख्यमंत्राी का कमान कांग्रेस को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले रेवन्ना रेड्डी के हाथों सौंपनी पड़ी। इस खेल में पूर्व मुख्यमंत्राी चंद्रशेखर राव ना घर के ना घाट के बचे हैं। करारी पराजय के बाद उनकी बेटी के. कविता को दिल्ली शराब घोटाले में केजरीवाल से मिलीभगत के कारण जेल की हवा खानी पड़ी है।तेलंगाना के मूल राज्य आंध्रप्रदेश की चुनावी फिजा भी रंगीन हुई पड़ी है। आम चुनाव के ऐलान से पहले तक केंद्र की सरकार के साथ तालमेल बिठाने की गाढ़ी कोशिश करते रहने वाले मुख्यमंत्राी वाईएसआर जगनमोहन रेड्डी अब ठगे से महसूस कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने पलटी मारते हुए पूर्व मुख्यमंत्राी चंद्रबाबू नायडू के तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) और अभिनेता पवन कल्याण की जनसेना पार्टी से तालमेल कर लिया है। नए गठबंधन से विधानसभा और लोकसभा चुनाव रोचक हो चला है। हालांकि आंध्रप्रदेश के सत्ता विरोधी मतों का एकछत्रा मालिक भारतीय जनता पार्टी गठबंधन ही नहीं रहने वाली है क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने आखिरी वक्ज पर प्रदेश में चुनावी रण की कमान मुख्यमंत्राी जगनमोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला के हाथों सौंप दी है। शर्मिला अब सुबह शाम घर का भेदी लंका डाहे के अंदाज में जनता के बीच भाई जगन के सरकार चलाने की क्षमता पर निरंतर प्रहार कर रही है। आंध्रप्रदेश से लगा राज्य कर्नाटक है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इसी इलाके से आते हैं। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सीधा लाभ मिला है। मुख्यमंत्राी सिद्धारमैया के नेतृत्व में सरकार में है। शिवकुमार जैसे चाणक्य कांग्रेस के पास है। ऐसे में कर्नाटक से लोकसभा की सीटों पर अपने पुराने पर्फामेंस को दोहरा पाना प्रधानमंत्राी नरेन्द्र मोदी के लिए चुनौती भरा है। कर्नाटक से लगा केरल और तमिलनाडु अब तक भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के लिए अभेद्य दुर्ग बना हुआ है। इसे भेदने के लिए एकबार फिर दक्षिण के राज्य भारतीय जनता पार्टी के लिए जोर आजमाइश का आधार है। इसके लिए अलग से व्यूह रचना बनाई गई है। इसकी सफलता और असफलता पर ही 400 प्लस पाने का नारा साकार या निराकार होने वाला है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल के पुनर्वासी की उम्मीद का आधार गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की लोकसभा सीटें हैं। इन पर बीते 17वीं लोकसभा में भाजपा को बंपर जीत का सौगात मिला था। मगर वक्ज और फिजा दोनों बदली हुई है। राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जैसे स्थापित दिग्गजों को हाल में सरकार बनाते वक्ज भाजपा नेतृत्व ने चर्चा से दूर ढकेल दिया। इन महारथियों को दरकिनार करने का परिणाम लोकसभा के नतीजों पर असर डाल सकता है। सबसे दिलचस्प नजारा महाराष्ट्र के 48 लोकसभा सीटों पर देखने को मिल रहा है। राजनीतिक चातुर्य का शानदार प्रदर्शन करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने हर मजबूत कुनबे को अंदर घुसकर तहस-नहस कर डाला है। राज और उद्धव ठाकरे की पारंपरिक प्रतिस्पर्धा के बीच एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्राी बनाकर शिवसेना का तीसरा और सबसे मजबूत कोण बनाया गया है। विपक्षी राजनीति के चाणक्य कहे जाते रहे शरद पवार के घर कोहराम मचा है। भतीजा अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्राी का शपथ लेते ही बुजुर्ग चाचा को वाणप्रस्थ आश्रम भेजने की कसम खा ली है। पार्टी का झंडा और तिरंगा दोनों पर कब्जा जमा लिया है। मौजूदा लोकसभा की प्रखर सांसद बहन सुप्रिया सुले को भी बारामती में ठौर मिल पाएगा या नहीं कहना मुश्किल पड़ रहा है। महाराष्ट्र में ऐसा कोई दल नहीं बचा जिसमें भाजपा की शह पर भारी तोड़फोड़ नहीं हुई। आगे नतीजा देखना बाकी है कि भारी तोड़ फोड़ का मरम्मत मतदाता करते हैं या नहीं। खेत खाए दिग्गजों को बचाते हैं या फिर भाजपा नीत गठबंधन राजनीतिक दांव-पेंच में अव्व्ल रहने का तमगा ले जाती है। दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत का रिपीट होना इस बात पर निर्भर करता है कि जेल भेजे गए मुख्यमंत्राी अरविंद केजरीवाल अपने प्रति संवेदना का सैलाव उमड़ा पाते हैं या नहीं। केजरीवाल मूलतः हरियाणा से आते हैं। प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने झटके में मुख्यमंत्राी मनोहर खट्टर को हटाकर करनाल लोकसभा का प्रत्याशी बना दिया। आरंभ में केजरीवाल के हितैषी रहे जिंदल परिवार के राजनीतिक वारिस नवीन जिंदल को भाजपा में लाकर रातोंरात हिसार लोकसभा से उम्मीदवार बना दिया गया है। बड़े उलटफेर में मनोहर खट्टर सरकार में सहभागी रहे जननायक जनता पार्टी से नाता तोड़ा गया। अब पूर्व उप मुख्यमंत्राी दुष्यंत चौटाला को कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में एकजुट हो रहे जाट मतदाताओं को बांटने का उपक्रम है। कांग्रेस नेताओं को बिखेरने की गोटी पड़ोसी पंजाब में जमकर चली गई। आम आदमी पार्टी के खिलाफ बने माहौल को अपने हक में भुनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने शिरोमणि अकाली दल तक से फासला बनाए रखने का फैसला किया है। हिमाचल प्रदेश में हांफती सुखविंदर सुक्खू की सरकार में तोड़फोड़ का काम तेज है। साथ ही उत्तर भारत की सीटों पर रंगमंच के तिलिस्म का गुलाल उड़ाने के लिए कंगना राणावत को भाजपा ने मंडी लोकसभा सीट से मैदान में उतार दिया है। हालात के असामान्य होने का संकेत देते हुए जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का वायदा एक बार फिर टाल दिया गया है। अब राज्य की लोकसभा सीटों के लिए कौन किससे नहीं लड़ रहा है यह किसी को पता नहीं है। फारुख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस पार्टी के दिग्गजों आमने सामने हैं। विपक्ष के बीच जारी जंग में भारतीय जनता पार्टी नए अंदाज से अपनी जीत का मंसूबा पाले है। पूर्वोत्तर में असम के मुख्यमंत्राी हेमंत बिस्व सरमा ने इस बार भी असम के साथ ही त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघवाल, नगालैंड, मिजोरम और सिक्किम में जीत की रणनीति का ठेका ले रखा है। चुनाव के इस बहुरंगी खेल में एक जुमला जो सटीक बैठ रहा है वह है- इस रंग बदलती दुनिया में न कोई मेरा है न कोई तेरा हैं