16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में घटित बहुचर्चित निर्भया बलात्कार कांड को लोग आज भी नहीं भूले। इस जघन्य आपराधिक कांड
ने न सिर्फ पूरे देश बल्कि विश्व आबादी के एक बड़े हिस्से को झकझोर दिया था। अपने पुरुष मित्रा के साथ फिल्म देखकर लौटती
मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में छह लोगों ने बेरहमी से बलात्कार किया था और उसे उसके पुरुष मित्रा के साथ नग्न अवस्था
से सुनसान सड़क पर फेंक दिया था। छह दिनों बाद सिंगापुर में इलाज के दौरान युवती की मौत हो गई थी। इस दरिंदगी में जो छह अभियुक्त शामिल थे उनमें से एक नाबालिग था। कहते हैं कि सबसे ज्यादा क्रूरता उसी ने की थी लेकिन नाबालिग था। इस कारण उसे न्यूनतम दंड मिला। उसके नाम को गुप्त रखा गया और सजा के तौर पर तीन वर्ष के लिए बाल सुधार गृह में भेज दिया गया। जबकि चार अभियुक्तों को फांसी की सजा दी गईं इस तरह नाबालिग बच्चों की संगठित और आकस्मिक अपराध में शामिल रहने की लंबी फेहरिस्त है। कई चैंकाने वाली कहानियां हैं। संगठित आपराधिक गिरोहों के संचालक अक्सर गरीब घरों के नाबालिग बच्चों को एक-दो साल के अनुबंध पर या स्थाई रूप से अपने गिरोह में शामिल करते हैं और चोरी-छिनतई से लेकर अन्य कृत्यों में इस्तेमाल करते हैं। इसमें सहूलियत होती है कि पकड़े जाने पर या तो उनकी उम्र और मासूमियत को देखते हुए अव्वल तो लोग पुलिस के हवाले नहीं करते। समझा बुझाकर, हिदायतें देकर छोड़ देते हैं। पुलिस के हवाले कर भी दें तो उन्हें जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ मिलता है। जुवेनाइल कोर्ट उन्हें न्यूनतम सजा देकर बाल सुधार गृह में भेज देता है। वहां से वे या तो दुर्दांत अपराधी बनकर निकलते हैं या फिर विलक्षण गुणों के साथ समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बन जाते हैं। दोनों तरह के उदाहरण समय-समय पर सामने आते रहे हैं।कई नाबालिग बच्चे आपराधिक प्रवृत्ति के नहीं होते लेकिन भावावेश में आकर
अपराध कर बैठते हैं। ऐसी ही एक घटना का गवाह एक राष्ट्रीय चर्चित खबरिया चैनल बना था। बाल सुधार गृह में हत्या के अपराध में सजा काट रहा एक बच्चा उस चैनल का स्टार क्राइम रिपोर्टर बना। अब वह इस दुनिया में नहीं है लेकिन अपने पीछे एक हैरत-अंगेज और प्रेरक कहानी छोड़ गया है। जब वह 12-13 वर्ष की उम्र का था जब किसी दुकानदार ने उसकी मां को गाली दे दी। इससे गुस्से में आकर उसने दुकान में पड़ा चाकू उठाकर दे मारा। उसकी गिरफ्तारी हुईं दिल्ली की जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट में सुनवाई हुई और उसे तिहाड़ जेल के बाल सुधार गृह में भेज दिया गया। उस खबरिया चैनल की मालकिन जो
समाजसेवी भी थी, एक बार बाल सुधार गृह में सजायाफ्ता बच्चों की स्थिति देखने के लिए वहां का दौरा किया। उन्हें पता चला कि
वहां एक बाल कैदी है जो अपना अधिकांश समय सुधार गृह की लाइब्रेरी में व्यतीत करता है। दिन-रात पढ़ता रहता है। उन्होंने
उत्सुकतावश उससे मुलाकात की और जानना चाहा कि वह किस विषय की पुस्तकों में रुचि रखता है और उससे क्या हासिल
करता है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह गंभीर साहित्यिक पुस्तकें पढ़ता है और पढ़ता ही नहीं उनकी गहराई को समझता भी है। बातचीत के दौरान उसके बौद्धिक स्तर को देखकर वे बहुत प्रभावित हुईं। उन्होंने बाल सुधार गृह के अंदर की गड़बड़ियों पर उसके जरिए स्टिंग आॅपरेशन कराया। मसलन बाल अपराधियों के बीच नशीले पदार्थों की आपूर्ति के तंत्रा, रंगदारी, भोजन में गड़बड़ी आदि से संबंधित हंगामेदार स्टोरी करवाईं उसकी प्रतिभा को देखते हुए उन्होंने उसे अच्छे आचरण के आधार पर जेल से बाहर निकालने की कोशिश की। इसमें सफल भी रहीं। बाहर निकालने के बाद उसे अपने चैनल में नौकरी पर रख लिया। कुछ ही
समय में वह बाल अपराधी अपने समय का नामी क्राइम रिपोर्टर बन गया। हालांकि कुछ होगा।वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफिया सम्राट अतीक अहमद के तीसरे और चैथे बेटे अहजान अहमद और आबान अहमद को उमेश पाल हत्याकांड के बाद से ही पुलिस हिरासत में प्रयागराज के धूमनगंज स्थित बाल सुधार गृह में रखा गया था। जब अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की पुलिस हिरासत में हत्या की खबर आई तो उसका बड़ा बेटा अचेत हो गया। उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। हालांकि 18 वर्ष की उम्र पूरी होने के बाद 9 अक्टूबर 2023 को अतीक अहमद के दोनों बेटों को रिहा कर उनकी बुआ शाहीन के संरक्षण में भेज दिया गया है ।प्रयागराज की पुलिस और स्थानीय लोगों का मानना है कि अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और पिता तथा चाचा की राजनीतिक हत्या के कारण दोनों युवकों के समाज की मुख्यधारा में आने की संभावना नहीं के बराबर है। वे अपने पिता के गिरोह का संचालन करते हुए उनके वैध-अवैध धंधों में ही योगदान दे सकते हैं। राजनीतिक परिस्थिति बदलने के बाद वे अपने पिता की तर्ज पर राजनीति में भी आ सकते हैं लेकिन माफिया संस्कृति से चाहकर भी किनारा नहीं कर सकते। पिछले 9 फरवरी को जयपुर की सेठी काॅलोनी स्थित बाल सुधार गृह की खिड़की की छड़ें काटकर 22 बाल अपराधी फरार हो गए थे। हालांकि बाद में उनमें से पंद्रह को पकड़कर वापस लाने में पुलिस को सफलता मिली। उनमें से तीन ने फरार होने के 20 दिनों बाद ही 29 फरवरी को रोहतक में एक व्यापारी की गोली मारकर हत्या कर दी। यह हत्या रोहित गोदारा गैंग के इशारे पर की गईं मामला रंगदारी वसूली का था। कांड को अंजाम देने के बाद तीनों नेपाल भाग गए थे। वहीं से उन्हें पुलिस ने दबोचा। जाहिर तौर
पर वे सुधार गृह से निकलने के बाद संगठित अपराध का हिस्सा ही बने रह सकते हैं। पता चला कि जयपुर के बाल सुधार गृह से फरार होने वाले बाल अपराधियों में कुख्यात गैंगस्टर लाॅरेंस विश्नोई गिरोह का एक सदस्य शामिल था जिसे जी क्लब पर
अंधाधुंध फायरिंग के मामले में पकड़ा गया था। अर्थात जानबूझ कर किए गए अपराध में शामिल था। वह एक साल से बंद था। कहते हैं कि सुधार गृह में बंद 40 बाल कैदियों के बीच उसने अपना गिरोह बना लिया था और दबदबा कायम कर लिया था।