बाल अपराध की समस्या दुनिया के प्रायः सभी देशों में हैं। इसपर बहुत पहले से नियम कानून बनाए जाते रहे हैं। अभी भारत समेत अधिकांश देश संयुक्त राष्ट्र संघ के दिशानिर्देशों का पालन करते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1989 में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए बाल अधिकारों पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन के निष्कर्षों को 1992 में भारत द्व
ारा अनुमोदित किया गया था। इसके अलावा किशोर न्याय प्रशासन के लिए संयुक्त राष्ट्र मानक न्यूनतम नियम 1985 बनाया गया जिसे बीजिंग नियम के रूप में भी जाना जाता है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र दिशानिर्देश 1990 जारी किया गया जिसे रियाद दिशानिर्देश के रूप में भी जाना जाता है। इस संबंध में मूलभूत सिद्धांतों में निर्दोषता की धारणा, सुनवाई का अधिकार, सकारात्मक पुनर्वास, उचित देखभाल और किशोरों के साथ दुर्व्यवहार से बचना आदि शामिल हैं।यूनाइटेड किंगडम अर्थात
ब्रिटेन में किशोर अपराध को एक क्षणिक चरण माना जाता था जो उम्र के साथ गायब हो जाएगा। न्यायिक सुधारवादियों ने किशोरों के इलाज के लिए एक अलग दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने रैग्ड औद्योगिक स्कूल आंदोलन चलाया जिसे
किशोर अपराध की रोकथाम की दिशा में पहली बार की गई पहल माना जाता है। इस आंदोलन के तहत बेघर, निराश्रित औरअपराधी बच्चों के लिए एक औद्योगिक स्कूल की स्थापना हुईं। मिस मैरी कारपेंटर नामक एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता किशोरों में अपराध की रोकथाम की दिशा में महत्वपूण्र् ा प्रयासों के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने ब्रिस्टल में एक रैग्ड औद्योगिक स्कूल शुरू किया। इसके अलावा 1838 में, किशोरों के लिए एक पार्कहर्स्ट की स्थापना की गई थी। देश में सारांश अधिकार क्षेत्रा अधिनियम 1879 के तहत यह प्रावधान किया गया कि 7 वर्ष से कम उम्र का बच्चा अपराध करने में असमर्थ है इसलिए, उसे दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। अपराधियों की परिवीक्षा (प्रोटेक्शन) अधिनियम, 1907 पारित किया गया जिसने अदालतों को कुछ
अपराधों में किशोरों को रिहा करने का अधिकार दिया। अंततः बाल अधिनिम 1908 के तहत किशोर अदालतें स्थापित की गईं। इन अदालतों को किशोरों से जुड़े मामलों से निपटने और युवा अपराधी की उचित देखभाल करने और सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार दिया गया था।इसके अलावा बच्चे और युवा व्यक्ति अधिनियम 1933 के तहत किशोरों के लिए रिमांड होम का प्रावधान किया। ट्रायल से पहले 17 साल से कम उम्र के बच्चों को संप्रेणक्ष गृह (आॅब्जर्वेशन होम) में रखा गया था। आपराधिक न्याय अधिनियम 1982 के बाद, यू.के. सरकार ने इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए किशोरों से संबंधित कानून को उदार (लिबरल) बनाया।संयुक्त राज्य अमेरिका में किशोर न्यायालयों का इतिहास 1869 में राज्य एजेंटों की नियुक्ति से शुरू हुआ जो किशोरों की देखभाल के लिए जिम्मेदार थे। 1878 में यह कार्य परिवीक्षा अधिकारियों को दे दिया गया। वर्तमान में, देश के प्रत्येक राज्य में ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक किशोर न्यायालय और न्यायिक सेवा में एक विशेष इकाई है। इन अदालतों को प्रत्येक राज्य की स्थानीय सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की
जाती है। इसके अलावा, अमेरिकी कांग्रेस ने किशोर अपराध के मुद्दे से निपटने के लिए किशोर न्याय और अपराध निवारण
अधिनियम 1974 लागू किया।इन अदालतों की कार्यप्रणाली के अनुरूप पुलिस सबसे पहले एक अपराधी बच्चे को हिरासत में लेती है और यह तय करती है कि बच्चे को हिरासत में रखा जाए या नहीं। पुलिस अधिकारी का अगला कर्तव्य अदालत को सूचित करना है। विचारण के दौरान परिवीक्षा अधिकारी को भी सुनवाई का मौका दिया जाता है। एक परिवीक्षा अधिकारी का यह कर्तव्य
है कि जब कोई बच्चा उसकी देखरेख में हो, तो वह बच्चे के लिए स्कूल या रोजगार ढूंढ़े। हालांकि, यदि किशोर परिवीक्षा के दौरान किसी शर्त का उल्लंघन करता है, तो उसे प्रमाणित स्कूल या बाल गृह में भेज दिया जाता है।