अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया भारत से बिल्कुल अलग है। भारत में जहां दोनों बड़ी पार्टियां कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी या तो प्रधानमंत्राी उम्मीदवार की घोषण्ाा कर देती हैं या चुनावी नतीजे आने के बाद इस पर फैसला होता है। अमेरिका में ठीकइसके उलट है। यहां की दोनों प्रमुख पार्टियां रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी राष्ट्रपति उम्मीदवार के चयन को लेकर भी जनता के बीच जाती हैं। दोनों पार्टियों में उम्मीदवार बनने की चाहत रखने वाले लोग हर स्टेट में प्राइमरी और कॉकस इलेक्शन में हिस्सा लेते हैं। प्राइमरी और कॉकस चुनाव में जो जीतता है, वह दोनों पार्टियों की ओर से औपचारिक उम्मीदवार बनता है। अमेरिकी चुनाव में राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन प्रक्रिया दुनिया भर में सबसे जटिल, लंबी और महंगी प्रक्रिया मानी जाती है। हर चार साल बाद डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवारी हासिल करने की चाहत रखने वाले लोग सर्दियों और वसंत ऋतु के दौरान आम चुनाव से पहले सभी राज्यों में प्राइमरी और कॉकस चुनाव का सामना करते हैं। हर राज्य में प्राइमरी औरकॉकस चुनाव जीतने के बाद इन्हें निश्चित संख्या में डेलिगेट्स का समर्थन हासिल होता है, जो उम्मीदवार महीनों चलने वाली इस प्रक्रिया में अपनी पार्टी के डेलिगेट्स की तय संख्या अपने पक्ष में कर लेता है, वह नॉमिनेशन हासिल कर लेता है। मतलब वह पार्टी का औपचारिक उम्मीदवार बन जाता है। जयादातर राष्ट्रपति उम्मीदवार अयोवा और न्यू हैंपशर जैसे राज्यों में अनौपचारिक रूप से प्राइमरी इवेंट्स के एक साल पहले ही कैंपेनिंग शुरू कर देते हैं, इसीलिए कहा जाता है कि अमेरिका में कभी चुनावी कैंपेन खत्म नहीं होता है। नॉमिनेशन प्रक्रिया के तहत इन्हीं दो राज्यों से प्राइमरी और कॉकस चुनाव की शुरुआत होती है।