पड़ोसी देश पकिस्तान आज जिस दौर से गुजर रहा है उसका सच यही है कि वह भले ही खुद को लोकतान्त्रिाक देश कहलाता है लेकिन लोकतंत्रा के नाम पर वहां बस दिखावा से ज्यादा कुछ भी नहीं। साल -दर साल चुनाव जरूर होते हैं। सरकार भी बनती है। सरकार गिरती है लेकिन उन सरकारों की हालत क्या है यह किसी से छुपा नहीं। लोकतंत्रा के नाम पर यह सब होता है लेकिन लोकतंत्रा को ढ़ंढने पर भी वह कही दिखता नहीं।पाकिस्तान केव निर्माण के बाद अभी तक वहां जितनी भी सरकार बनी है उनमे से अधिकतर सरकारें सेना और वहां की खुफिया एजेंसी के इशारे पर ही नाचती रही है। सेना जबतक खुश है तबतक सकरा भी चलती है और सेना के नाराज होते ही सरकार कहाँ जाती है कोई जनता तक नहीं। इस खेल में जनता पिसती है और सच तो यही है कि जनता अपनी गरीबी, उपेक्षा, शोषण से परेशान होकर हर चुनाव में झुंड के झुंड कतार में खड़े होकर मतदान तो करते हैं लेकिन जो सरकार बनती है वह जनता की उम्मीदो पर खड़ी नहीं उतरती। अंजाम यह है कि आज पकिस्तान दक्षिण एशिया के सांसे बदनाम देशों में शुमार है और वहां की जनता आज भी भूख और गरीबी से कराह रही है। आगे बढे इससे पहले इससे पहले पकिस्तान के लोकतंत्रा पर चर्चा जरुरी है। यह बात और है कि दुनियाभर में 2023 में लोकतंत्रा के स्तर में बड़ी गिरावट आई। ब्रिटिश अखबार द इकोनॉमिस्ट ने 167 देशों में लोकतंत्रा की रैंकिंग को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें 167 देशों को 4 कैटेगरी में बांटा गया है। पूर्ण लोकतंत्रा, खामियों वाला लोकतंत्रा और अथॉरिटेरियन रेजीम यानी जहां एक सिस्टम तानाशाही के रोल में होता है। चौथी कैटेगरी हाइब्रिड रेजीम की है, यानी वो देश जहां पूरी तरह से न लोकतंत्रा है और न ही तानाशाही। इस लिस्ट में भारत को 7.18 स्कोर के साथ 41वीं रैंकिंग मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कुछ खामियों के साथ लोकतंत्रा मौजूद है। दूसरी तरफ रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में पाकिस्तान की रैंकिंग में बड़ी गिरावट आई है। पाकिस्तान 11 पायदान नीचे खिसकर 118वीं रैंक पर पहुंच गया है। खुद को दुनिया का पांचवा बड़ा लोकतंत्रा बताने वाले पाकिस्तान का स्कोर 3.25 है, यानी यहां पर तानाशाही है।उधर पकिस्तान से भारत की तुलना करें तो कई बात साफ हो जाती है। भारत के स्कोर में बड़ी गिरावट साल 2019 में दर्ज की गई थी। हालांकि, इसके बाद से देश का स्कोर लगातार बेहतर हुआ है। लिस्ट में टॉप पर नॉर्वे है। यहां पूर्ण लोकतंत्रा है। इसके बाद न्यूजीलैंड, आइसलैंड और स्वीडन का नंबर है।रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में 24 देशों में पूर्ण लोकतंत्रा है, 50 देशों में खामियों वाला लोकतंत्रा है तो वहीं सबसे ज्यादा 59 देशों में तानाशाही है। 167 में से 34 देश ऐसे हैं, जहां हाइब्रिड रिजाइम है। इसमें बांग्लादेश, भूटान और तुर्किये जैसे देश शामिल हैं।वहीं चीन की रैंकिंग पाकिस्तान से भी कम है। द इकोनॉमिस्ट ने चीन को 148वें पायदान पर रखा है। चीन का स्कोर 2.12 है, जो यहां की सरकार को तानाशाह की कैटेगरी में रखता है। अमेरिका 7.85 स्कोर के साथ 29वें नंबर पर है, तो वहीं ब्रिटेन को 18वीं रैंक मिली है। लिस्ट में सबसे नीचे अफगानिस्तान, म्यांमार और नॉर्थ कोरिया का नाम है।रिपोर्ट के मुताबिक, लोकतंत्रा में गिरावट के पीछे एक बड़ी वजह दुनिया में चल रही 2 जंग और राजनीतिक पार्टियों में विश्वास की कमी है। कई देशों में सरकारें गिर रही हैं, तख्तापलट हो रहा है, जिसकी वजह से तनाव बढ़ता जा रहा है। पकिस्तान का मौजूदा लोकतंत्रा किस तरह से थिरकता दिख रहा इसकी बानगी वहा की हालिया राष्ट्रपति चुनाव से ही पता चलता है। थिरकते लोकतंत्रा की कहानी तो वहा की असेम्ब्ली चुनाव से भी लगती है जहाँ एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचारी चुनाव लड़ रहे थे और पीएम बनने को तैयार थे। लेकिन जनता आखिर करे भी तो क्या। लोकसभ के चुनाव में हालांकि किसी भी पार्टी को बहुमत तो नहीं मिला। इमरान की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी जरूर लेकिन सरकार तो गठबंधन की ही बनी। पीएम बने वही जो पहले देश को चला रहे थे। लेकिन असली कहानी तो राष्ट्रपति चुनाव में देखने को मिली। पिछले सप्ताह पाकिस्तान में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में आसिफ अली जरदारी ने जीत हासिल की है। जरदारी पाकिस्तान के 14वें राष्ट्रपति बन गए हैं। उन्होंने इमरान खान के कैंडिडेट महमूद खान अचकजई को 230 वोटों से हराया। जरदारी को 411 वोट मिले, जबकि अचकजई सिर्फ 118 वोट हासिल कर पाए।बता दें कि नवाज की पार्टी पीएमएल -एन और बिलावल की पार्टी पीपीपी ने मिलकर जरदारी को उम्मीदवार बनाया था। वे साल 2008 में भी राष्ट्रपति बने थे। वहीं, इमरान समर्थक ैप्ब् पार्टी ने अचकजई को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था।अगर आसिफ जरदारी की बात करें तो पाकिस्तान के लोकतंत्रा की हकीकत का पता चलता है और फिर वहां की जनता कैसी हैयह भी समझ में आ जाता है। आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हैं। वो देश की पहली महिला प्रधानमंत्राी रहीं बेनजीर भुट्टों के पति और पीपीपी चेयरमैन बिलावल भुट्टो के पिता हैं। जरदारी को पाकिस्तान में मिस्टर 10 फीसदी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वे बेनजीर की सरकार के दौरान किसी भी प्रोजेक्ट की शुरुआत या सरकार से लोन की इजाजत दिलवाने के बदले 10 फीसदी के कमीशन की मांग करते थे। भ्रष्टाचार, बैंक फ्रॉड, किडनैपिंग और हत्या के आरोपों में जरदारी ने करीब साढ़े 8 साल जेल की सजा काटी है। बता दें कि बेनजीर ने अपनी राजनीतिक वसीयत में जरदारी को पार्टी नेता के रूप में अपना उत्तराधिकारी नामित किया था। 2007 में भुट्टो की हत्या के बाद नवाज की पार्टी पीएमएल -एन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और जनरल परवेज मुशर्रफ को सत्ता से बेदखल कर दिया था। इसके बाद 6 सितंबर 2008 को जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने थे। दरअसल पकिस्तान की आज की जो कहानी है उसकी नीव तो आजादी के समय ही रख दी गई थी। यही वजह है कि पाकिस्तान के बनने के पश्चात प्रारंभ से पैदा हुई उसकी राजनीतिक दुश्वारियां अभी तक पीछा नहीं छोड़ रही हैं। सत्ता के संघर्ष के इस खेल में पाकिस्तान ने पाया कुछ नहीं, इसके विपरीत खोया बहुत है। आम चुनाव में पाकिस्तान के राजनीतिक आसमान में फिर से अस्थिरता के बादल उमड़ते-घुमड़ते दिखाई दिए। पाकिस्तान की सेना और आतंकियों के संकेत पर जबरदस्ती पदच्युत किए गए पूर्व प्रधानमंत्राी इमरान खान के लिए इस चुनाव में राह को कठिन बनाने की भरपूर राजनीति की गई। इसके बाद भी पाकिस्तान में एक बड़ी ताकत के रूप में अपना स्थान कायम रखा। इसे इमरान खान की लोकप्रियता ही कहा जाएगा कि उनके विरोधी दल ताल ठोककर मैदान में सामने खड़े थे, इसके बाद भी इमरान की पार्टी पाकिस्तान-तहरीक-ए-इंसाफ सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आई। वहीं नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग नवाज दूसरे और बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी तीसरे स्थान को ही प्राप्त कर सके। इसके यह भी निहितार्थ हैं कि इन दोनों से इमरान खान ज्यादा लोकप्रिय हैं। जैसा कि पाकिस्तान का चरित्रा रहा है कि वहां प्रधानमंत्राी पद पर आसीन होने वाला व्यक्ति तब तक कुछ नहीं कर सकता, जब तक सेना और आतंकी आकाओं का आदेश नहीं मिल जाए। इसे इस रूप में कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पाकिस्तान की सत्ता का निर्धारण सेना के हाथ में ही रहता है। पाकिस्तान में कहने को ही लोकतंत्रा है, सच मायनों में वहां सेना का तंत्रा ही कार्य करता है। सेना के अधिकारी जब चाहें जैसा चाहें, निर्णय कर सकते हैं। वहां सेना के मुख्य अधिकारी सत्ता को गिराने का काम करते आए हैं। उल्लेखनीय है कि परवेज मुशर्रफ सेना के अधिकारी ही थे, जिन्होंने पाकिस्तान में तख्तापलट करते हुए शासन की बागडोर संभाली थी। इसी प्रकार अन्य भी कई उदाहरण हैं।यह पाकिस्तान की नियति बन चुकी है कि वहां अभी तक कोई भी राजनीतिक दल सत्ता का संचालन पूरे कार्यकाल तक नहीं कर सका है। क्योंकि वहां सरकार के कामों में सेना का हस्तक्षेप बहुत ज्यादा है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि पाकिस्तान में सेना ने ज्यादातर शासन किया है। एक प्रकार से पाकिस्तान बनने के बाद से ही सेना की राजनीतिक सक्रियता रही है। जिसके कारण पाकिस्तान में लोकतंत्रा होते हुए भी सैनिक शासन जैसा ही रहा है। इस बार के चुनाव में लोकतंत्रा के हिसाब से इमरान खान काफी मजबूत दिखाई दे रहे थे, जो चुनाव के परिण्ाामों ने भी स्पष्ट किया, लेकिन इमरान खान की पार्टी बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर रही। इमरान खान की पार्टी के नेताओं ने दावा किया था कि उनकी पार्टी 150 से ज्यादा सीटों पर विजय प्राप्त कर रही है। यह आंकड़े मतों की गिनती होते समय प्रारंभिक रूप से दिखने लगे थे, लेकिन उसके बाद स्थिति अचानक से बदल गई। उसके जो उम्मीदवार आगे चल रहे थे, वे पीछे होते चले गए। इस चुनाव में एक बार फिर राजनीतिक विद्वेष की खाई और ज्यादा चौड़ी होती दिखाई दी। नवाज शरीफ के पार्टी ने अपने रास्ते साफ करने के लिए इमरान को जेल भेजने का कुचक्र रचा। इमरान को चार मामलों में सजा भी मिली है, जिसके कारण चुनाव के दौरान इमरान जेल में ही रहे। इसे चुनाव प्रचार से दूर करने की कवायद के रूप में देखा जा गया। इतना ही नहीं इमरान की पार्टी के नेताओं के सामने भी कई प्रकार के संकट खड़े किए गए। फिर भी इमरान को नहीं रोक सके। अब इमरान को रोकने के लिए एक बार फिर से पाकिस्तान गठबंधन सरकार बनाने की ओर कदम बढ़ा चुका है। यानी फिर से पाकिस्तान में ऐसा राजनीतिक भंवर बन रहा है, जिसमें पाकिस्तान निकलने की कवायद कर रहा था।पाकिस्तान में कहा यह भी जा रहा कि सेना के हस्तक्षेप के चलते इमरान को सत्ता के मुहाने पर आकर रोक दिया है। चुनाव परिणाम के बाद पाकिस्तान में इमरान के समर्थक सड़कों पर उतर आए और जमकर विरोध किया। इमरान समर्थकों की यह कवायद थम जाएगी, ऐसा फिलहाल तो नहीं लगता। इसलिए कहा यह भी जा रहा है कि पाकिस्तान में आगामी हालात राजनीतिक रूप से रस्साकसी वाले ही रहेंगे, जिससे फिर राजनीतिक अस्थिरता होगी और पाकिस्तान के बिगड़े हुए हालात और भी ज्यादा खराब होते जाएंगे, यह तय है।आज पाकिस्तान की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। पाकिस्तान में भुखमरी के हालात हैं। इसका एक बड़ा कारण पाकिस्तान में लोकतंत्रा का गिरवी होना ही है। स्थिति यह है कि पाकिस्तान में राजनेता मौज कर रही है और जनता दर दर की ठोकर खाने के लिए मजबूर है। शासन की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने देश की स्थिति को संभाले, परंतु पाकिस्तान में सरकार को संभालने की राजनीति ही की जाती रही है। जिसके कारण पाकिस्तान के ऐसे हालात बने। इतना ही वहां के राजनेता आतंकी आकाओं और सेना की कठपुतली ही बने रहे, जिसके चलते उनको सत्ता का सुख भी प्राप्त हुआ।पाकिस्तान की मौजूदा परिस्थितियां वहां के राजनीतिक नेताओं की देन हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान आज बर्बादी के कगार पर जा चुका है। हम जानते हैं कि इमरान के शासनकाल के दौरान जनता अपना पेट भरने के लिए सड़कों पर उतर आई। लूटपाट भी की, लेकिन राजनेताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और पाकिस्तान की दुर्गति होती चली गई। अब पाकिस्तान के हालात उससे भी बुरे हो सकते हैं, क्योंकि वहां जोड़तोड़ करके जो सरकार बनेगी, उसके सामने एक मजबूत विपक्ष होगा, जो सरकार की निरंकुश कार्रवाई पर लगाम लगाने में समर्थ होगी। अब अगर पाकिस्तान को अपनी स्थिति सुधारना है तो उसे सत्ता की राजनीति करने की बजाय जनहित की राजनीति पर ध्यान देने पर बल देना होगा। तभी पाकिस्तान का संकट समाप्त हो सकेगा। आज भारत का पडोसी देश अपनी बेवसी पर आंसू बहा रहा है। पकिस्तान कभी भारत का ही अंग था लेकिन आज वह हमसे जुड़ा हो गया है। लेकिन भारत की बदीउ समस्या तो यह है कि पडोसी देश अगर आतंकवाद का गढ़ है और भूख से पीड़ित तो उसका बड़ा असर भारत पर भी तो पडेगा। ऐसे में भारत को हर समय पाकिस्तान से सतर्क रहने की जरूरत है।